एक उंघते हुए शहर का बाशिंदा हूँ मैं.
धुआं उगलती चिमनियों से घिरा है शहर सारा
चाँद पे भी धुल जमी लगती है
हर कोई यहाँ खोया हुआ सा लगता है.
राह चलते कोई हरा पेड़ दिख जाये
या धुप थोड़ी सोंधी हो
तो घर की याद आ जाती है.
वो उस गली के मोड पे
जो फलवाला है
मेरे गाँव का है
अब रोज मिलता हूँ उससे.
कि इस शहर में वो अपना सा लगता है.
जाड़े की रातें यहाँ उतनी ठंडी नहीं हैं
पर मुझे ये गर्म रातें नहीं भातीं.
मैं कम्बल में दुबक कर सोना चाहता हूँ.
मुझे यहाँ नींद नहीं आती.
क्या करूँ ये शहर मुझे अपना नहीं लगता...
धुआं उगलती चिमनियों से घिरा है शहर सारा
चाँद पे भी धुल जमी लगती है
हर कोई यहाँ खोया हुआ सा लगता है.
राह चलते कोई हरा पेड़ दिख जाये
या धुप थोड़ी सोंधी हो
तो घर की याद आ जाती है.
वो उस गली के मोड पे
जो फलवाला है
मेरे गाँव का है
अब रोज मिलता हूँ उससे.
कि इस शहर में वो अपना सा लगता है.
जाड़े की रातें यहाँ उतनी ठंडी नहीं हैं
पर मुझे ये गर्म रातें नहीं भातीं.
मैं कम्बल में दुबक कर सोना चाहता हूँ.
मुझे यहाँ नींद नहीं आती.
क्या करूँ ये शहर मुझे अपना नहीं लगता...